"बहुत दिन हुए बिछड़े हुए , दिल में कसक आज भी है
तूफ़ान तो थम गया , पत्थरो पे निशाँ आज भी हैं
हम हँसते है तो दुनिया समझती है ख़ुशी का आलम है
जो पल हाथों से निकल गया उसकी जुस्तजू आज भी है
खुदा गवाह है हमने किसी का दिल नहीं तोडा
शायद वो लौट आये , उसका इंतज़ार आज भी है
शबनम के चाँद कतरे हाथ में लेकर
तारो को एक तक देखते हुए
सूनी सड़क पर रात की स्याही में , चलते जाना आज भी है
हर इंसान कोशिश कर रहा है , मंजिल तक पहुँचने की
दुनिया के इस मजमें में , हम अकेले तनहा आज भी हैं "
कैसी है ना ये ज़िन्दगी हर पल एक नया ख्वाब देखती है , फिर अगले ही पल टूट कर बिखर जाती है . एक पल के लिए तो लगता है की ज़माने भर की खुशियाँ फिर लौट आई है पर अगले ही पल वो खुशियाँ फिर से चकनाचूर हो जाती हैं.
तुम से कुछ कहना चाहता था, पर समझ नहीं पा रहा था की बात शुरू कहाँ से करूँ ? पर कहीं ना कहीं से शुरुआत तो करनी ही पड़ेगी ना . मैं कई दिनों से मन पर एक बोझ लिए जी रहा हूँ. मैंने कहीं पढ़ा था की आदमी के मन पर कोई बोझ हो तो उसे किसी से बाँट लेना चाहिए , इस से वो बोझ कुछ कम हो जाता है . अब तुम से बेहतर कौन होगा जिससे मैं अपने इस बोझ को बाँट सकूं ?
कुछ दिनों से देख रहा हूँ तुम मेरी ज़िन्दगी में शहद की तरह घुलती जा रही हो . मुझे तुम्हारी आदत सी पड़ती जा रही है . दिन में 1-2 बार tum से बात ना हो तो ऐसा लगता है की ज़िन्दगी में कुछ कमी सी है . मुझे पता ही नहीं चला तुम कब मेरी ज़िन्दगी में आई और मेरी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन गयी .
काश ! तुम मुझे पहले मिली होती . एक पत्थर था मैं जो की ऊपर से समतल सा था , लेकिन भीतर हे भीतर खुद से उलझा हुआ . लोग मुझे संगदिल और घमंडी कहते , मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगता . लेकिन तुमने मेरे भीतर अंकित निबंध के एक एक शब्द को कितनी खूबसूरती और आसानी से पढ़ लिया था . तुम्हारी दोस्ती और साथ पा कर मैं उफनती नदी की तरह बहने लगा था . मुझे किनारों का होश ही कहाँ था , मैं तो सिर्फ बहते रहना चाहता था . तुम्हारे साथ गुज़ारा एक एक पल समेत लेना चाहता हूँ अपनी लहरों में.
कितनी घनी होती ही स्मृतियों की बगिया, इनमें से निकलना मुश्किल है और छोड़ना तो है ही दर्द की चुभन सा . कितने लम्बे कदम हैं इन सन्नाटों के की घिरता ही जा रहा हूँ मैं . कितना कुछ याद आ रहा है आज . यह मन भी बड़ा अजीब होता है , ज़िन्दगी जी कर सिर्फ खुशियों की उपलब्धियां जुटाता है और मादा बन्दर की तरह खुशियों के शत -विक्षत शव को सीने से लगाये रखता है .
मैं जानता हूँ ' जान ' मुझे Possessive नहीं होना चाहिए पर पता नहीं क्यूँ मैं ये बर्दाश्त नहीं कर सकता की तुम्हारे और मेरे बीच कोई आये . तुम और लोगों के साथ कैसे भी सम्बन्ध रखो पर मेरे और तुम्हारे रिश्ते से उन्हें दूर ही रखो . हमारी दोस्ती में उन लोगों की वजह से कोई फरक नहीं पड़ना चाहिए . इतनी उम्मीद तो मैं तुम से कर ही सकता हूँ ना जान .........
hmmm..... i know for whom these lines are for...
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