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Sunday 4 March 2012

बेटी ....






सजा  नहीं  सपना  होती  है  बेटी 


गैरों के  बीच अपनी  होती  है  बेटी .


रंगों  से  सजाती  है  आंगन  घरो  के 


आंगन  की  अल्पना  होती  है  बेटी .


"वेदना "  नहीं  वरदान  होती  है  बेटी 


आस्था  और  अरमान  होती  है  बेटी .


वजूद  उसका  कभी  मिट  सकता  नहीं 


भार नहीं  जीवन  का सार  होती  है  बेटी .


सुख  की  सुबह  हो  या  गम   की  शाम 


बिना  कहे  हर  पल  साथ  होती है  बेटी .


जीवन  की  उलझी  रहो  के  बीच 


एक  सहज  संवेदना  होती  है  बेटी .


हक  होता  है  मगर  हक  की  बात  कभी  करती  नहीं 


हकीकत  और  हसरतो  का  इन्द्रधनुष  होती  है  बेटी .


आँखों  में  रख कर  पलकों  से  सजाती  है  जीवन 


सच  पूछो  तो  कभी  सीता  कभी  राम  होती  है  बेटी .



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