सजा नहीं सपना होती है बेटी
गैरों के बीच अपनी होती है बेटी .
रंगों से सजाती है आंगन घरो के
आंगन की अल्पना होती है बेटी .
"वेदना " नहीं वरदान होती है बेटी
आस्था और अरमान होती है बेटी .
वजूद उसका कभी मिट सकता नहीं
भार नहीं जीवन का सार होती है बेटी .
सुख की सुबह हो या गम की शाम
बिना कहे हर पल साथ होती है बेटी .
जीवन की उलझी रहो के बीच
एक सहज संवेदना होती है बेटी .
हक होता है मगर हक की बात कभी करती नहीं
हकीकत और हसरतो का इन्द्रधनुष होती है बेटी .
आँखों में रख कर पलकों से सजाती है जीवन
सच पूछो तो कभी सीता कभी राम होती है बेटी .
Bahut achi likhi hai Snigdha ke liye....
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