Friday 28 December 2012
Monday 3 December 2012
Wednesday 22 August 2012
Wednesday 8 August 2012
Tuesday 7 August 2012
Tuesday 26 June 2012
Thursday 24 May 2012
Thursday 26 April 2012
Wednesday 25 April 2012
Monday 23 April 2012
माँ .....
माँ संवेदना है, भावना है , अहसास है
माँ चिंता है, याद है, हिचकी है
माँ हमेशा बच्चे की चोट पर सिसकी है...
तो पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है
पिता छोटे से परिंदे का आसमान है...
वो खुशनसीब हैं, माँ-बाप जिनके साथ होते हैं क्योंकि,
माँ-बाप की आशीषों के हजारों हाथ होते है...
माँ जिन्दगी के फूलों का वास है..
तो, पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है...
माँ गीत है, लोरी है, प्यारी सी थाप है
माँ पूजा की थाली है, मन्त्रों का जाप है...
तो, पिता उंगली पकड़े बच्चे का सहारा है
पिता कभी कुछ खट्टा तो कभी खारा है...माँ चिंता है, याद है, हिचकी है
माँ हमेशा बच्चे की चोट पर सिसकी है...
तो पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है
पिता छोटे से परिंदे का आसमान है...
वो खुशनसीब हैं, माँ-बाप जिनके साथ होते हैं क्योंकि,
माँ-बाप की आशीषों के हजारों हाथ होते है...
Thursday 19 April 2012
ज़िन्दगी यूँ थी....
ज़िन्दगी यूँ थी के जीने का बहाना तू था
हम फ़क़त ज़ेब -इ -हिकायत थे , फ़साना तू था...हम ने जिस जिस को भी चाहा तेरे हिज्राँ में , वो लोग
आते जाते है मौसम थे , ज़माना तू था...
अब के कुछ दिल ही न मन के पलट कर आते
वरना हम दर -बा -दरों का तो ठिकाना तू था...
यार -ओ -अघ्यार के हाथों में कमाने थीं 'फ़राज़'
और सब देख रहे थे के निशाना तू था....
Tuesday 17 April 2012
क्यों ?
अब नहीं आती
रात भर जाग कर बात करने वाली रातें....
अब नहीं होते
ख़ामोशी वाले कितने घंटे......
अब नहीं मिलते
मुश्किल से निकाले हुए पांच मिनट .....
अब नहीं आती वो मिस्सेड कालें.....
अब नहीं जगाता
तुम्हें रात रात भर....
अब नहीं करता
तुम्हें मिलने की जिद....
अब नहीं मांगता
तुम्हारी तस्वीरें ......
अब नहीं खरीदता
तुम्हारे लिए उपहार .....
फिर भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ ......
क्यों ? कैसे ?
शायद .......
ऐसे ही :)
तुझे भूलते जाते हैं.........
बुझती हुयी साँसों से हर वादा निभाते हैं
तुझे भूलते जाते हैं...तुझे भूलते जाते हैं
उम्मीद से हर रिश्ता तोडे हुए हम
तेरे दर है जब से छोड़ा..अपने घर भी कहाँ जाते हैं
हम तनहा रह के ख़ुद को तेरे और करीब पाते हैं
खुदा भी आजकल है मुझपर मेहरबान अजब देखो
जब चाहता हूँ अश्क उमड़ते चले आते हैं
तू फ़िक्र न कर तेरी रुसवाई का मेरे हमदम
जिससे भी मिलते हैं हर लम्हा मुस्कुराते हैं
अब तो खूब सीख लिया हमने झूठ बोलने का हुनर
कह रहे हैं तुझे भूलते जाते हैं...हाँ, भूलते जाते हैं...
Friday 6 April 2012
Thursday 5 April 2012
Wednesday 4 April 2012
Tuesday 3 April 2012
Monday 2 April 2012
Sunday 1 April 2012
Wednesday 28 March 2012
Tuesday 27 March 2012
शीशा......
मैं उस के हाथों में था टूटे हुए शीशे की तरह..
बड़ी उम्मीद थी की बिखरने नही देगी,
बस गिराया कुछ इस अदा से की..
फिर सिमटने की आस ही न रही .
बड़ी उम्मीद थी की बिखरने नही देगी,
बस गिराया कुछ इस अदा से की..
फिर सिमटने की आस ही न रही .
मजबूर.......
कितने मजबूर हैं तकदीर के हाथों हम ,
ना तुम्हे पाने की हैसीयत रखते है ना तुम्हे खोने का होंसला....
ना तुम्हे पाने की हैसीयत रखते है ना तुम्हे खोने का होंसला....
गिला - शिकवा
मिला वो भी नहीं करते , मिला हम भी नहीं करते
गिला वो भी नहीं करते , शिकवा हम भी नहीं करते
किसी मोड़ पर टकराव हो जाता है अक्सर ही,
रुका वो भी नहीं करते ,ठहरा हम भी नहीं करते ...
गिला वो भी नहीं करते , शिकवा हम भी नहीं करते
किसी मोड़ पर टकराव हो जाता है अक्सर ही,
रुका वो भी नहीं करते ,ठहरा हम भी नहीं करते ...
Monday 26 March 2012
दर्द
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तेरा क्या भरोसा एय हमसफ़र
तेरी मुख्तासिर सी नवाज़िशें मेरा दर्द और बढ़ा ना दे...
तेरी मुख्तासिर सी नवाज़िशें मेरा दर्द और बढ़ा ना दे...
Sunday 25 March 2012
Saturday 24 March 2012
पर ये ख्वाब है
बंद आखों में बिन बोले तुम चली आती हो
थोड़ी देर ही सही जीवन को महका जाती हो
मैं सोचता हूँ की कहीं ये सच तो नहीं है
पर ये ख्वाब है तुम धीरे से समझा जाती हो
थोड़ी देर ही सही जीवन को महका जाती हो
मैं सोचता हूँ की कहीं ये सच तो नहीं है
पर ये ख्वाब है तुम धीरे से समझा जाती हो
तुम्हारा आना ...... तुम्हारा जाना
कोई आ जाता है अक्सर मेरे गुमनाम ख्यालों में
उलझता जाता हूँ फिर मैं उसकी यादों के जालों में
सौ बार कोशिश कर लिया आ न सका उससे बाहर
जाने क्या सुख मिलता मुझे इन जी के जंजालों में.
उलझता जाता हूँ फिर मैं उसकी यादों के जालों में
सौ बार कोशिश कर लिया आ न सका उससे बाहर
जाने क्या सुख मिलता मुझे इन जी के जंजालों में.
छोड़ के जाना न तुम मुझे......
मेरे लिए तो तेरी एक मुस्कान बहुत है
इतना तो करम कर दे एहसान बहुत है
सहता हूँ किस तरह तुझे मालूम नहीं है
मेरे दुश्मन की तरफ तेरा रुझान बहुत है
खिंचता ही जा रहा हूँ तेरी चाहत की तरफ मैं
वैसे तो मोहब्बत के सिवा काम बहुत है
दिल की सुनूँ मैं या ज़माने की सुनूँ मैं
मेरा दिल तेरी मोहब्बत में बदनाम बहुत है
अब आ गए हो छोड़ के जाना न तुम मुझे
पहलू में तेरी मुझको आराम बहुत है,
मैं जानता हूँ .........
क्या होगा मोहब्बत का असर जानता हूँ
दिल पर ही बरसेगा कहर जानता हूँ
इक तेरी ही चाह में मेरा तो सूख-चैन गया
पर तुझको नहीं है खबर जानता हूँ
दिल की तसल्ली के लिए बैठा हूँ किनारे पर
न आएगी मोहब्बत की लहर जानता हूँ
जब-जब तुझसे मिलने की दुआ है की मैंने
कैसे भूलूंगा वो शामो-सहर जानता हूँ
नाकाम हसरतों को लिए जी रहा हूं मैं
इक दिन तो पीना है जहर जानता हूँ.
तुम्हे क्या पता...................
तुम्हे क्या पता कि क्या हो तुम......
बहती हुई नदी हो,
खूबसूरत फिजां हो तुम
तुम्हे क्या पता...................
मोहब्बत एक तहरीर है
अन्दाजें बयां हो तुम
तुम्हे क्या पता....................
सलीके इश्क कि महफ़िल में
शर्मो-हया हो तुम
तुम्हे क्या पता...................
बीते हुए कल की
एक खूबसूरत वाकया हो तुम
तुम्हे क्या पता...................
Friday 23 March 2012
तेरा गुमान होता है......
किसी को देखते ही ही तेरा गुमान होता है.
मेरा हर ख्वाब बस यूँ ही तमाम होता है.
मैंने तो कदम रख दिया है राहे-इश्क में
देखता हूँ इस सफ़र का क्या अंजाम होता है.
ये तो मेरे दिल की फितरत है मैं क्या करूँ
इक तेरा दिल ही अब इसका मुकाम होता है.
मुमकिन नहीं है अब तो भूल जाऊं मैं तुम्हे
मेरे लब पे अब तो बस तेरा ही नाम होता है.
ऐ मेरे दिल अब ये तू मुझको भी बता दे
कि उसकी याद सिवा भी कोई काम होता है.
Thursday 22 March 2012
Wednesday 21 March 2012
Tuesday 20 March 2012
Monday 12 March 2012
Tuesday 6 March 2012
कोई ख्वाब नहीं ....
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है ,
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ...
की तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई ख्वाब नहीं ....
यहाँ तो दिल का यह आलम है क्या कहूं कम्बखत..
भुला सका ना यह वो सिलसिला जो था भी नहीं....
वो एक खयाल जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो एक बात जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त जो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए ...
तुम्हें भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
की तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई ख़्वाब नहीं ...
Monday 5 March 2012
' जान '.................
"बहुत दिन हुए बिछड़े हुए , दिल में कसक आज भी है
तूफ़ान तो थम गया , पत्थरो पे निशाँ आज भी हैं
हम हँसते है तो दुनिया समझती है ख़ुशी का आलम है
जो पल हाथों से निकल गया उसकी जुस्तजू आज भी है
खुदा गवाह है हमने किसी का दिल नहीं तोडा
शायद वो लौट आये , उसका इंतज़ार आज भी है
शबनम के चाँद कतरे हाथ में लेकर
तारो को एक तक देखते हुए
सूनी सड़क पर रात की स्याही में , चलते जाना आज भी है
हर इंसान कोशिश कर रहा है , मंजिल तक पहुँचने की
दुनिया के इस मजमें में , हम अकेले तनहा आज भी हैं "
कैसी है ना ये ज़िन्दगी हर पल एक नया ख्वाब देखती है , फिर अगले ही पल टूट कर बिखर जाती है . एक पल के लिए तो लगता है की ज़माने भर की खुशियाँ फिर लौट आई है पर अगले ही पल वो खुशियाँ फिर से चकनाचूर हो जाती हैं.
तुम से कुछ कहना चाहता था, पर समझ नहीं पा रहा था की बात शुरू कहाँ से करूँ ? पर कहीं ना कहीं से शुरुआत तो करनी ही पड़ेगी ना . मैं कई दिनों से मन पर एक बोझ लिए जी रहा हूँ. मैंने कहीं पढ़ा था की आदमी के मन पर कोई बोझ हो तो उसे किसी से बाँट लेना चाहिए , इस से वो बोझ कुछ कम हो जाता है . अब तुम से बेहतर कौन होगा जिससे मैं अपने इस बोझ को बाँट सकूं ?
कुछ दिनों से देख रहा हूँ तुम मेरी ज़िन्दगी में शहद की तरह घुलती जा रही हो . मुझे तुम्हारी आदत सी पड़ती जा रही है . दिन में 1-2 बार tum से बात ना हो तो ऐसा लगता है की ज़िन्दगी में कुछ कमी सी है . मुझे पता ही नहीं चला तुम कब मेरी ज़िन्दगी में आई और मेरी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन गयी .
काश ! तुम मुझे पहले मिली होती . एक पत्थर था मैं जो की ऊपर से समतल सा था , लेकिन भीतर हे भीतर खुद से उलझा हुआ . लोग मुझे संगदिल और घमंडी कहते , मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगता . लेकिन तुमने मेरे भीतर अंकित निबंध के एक एक शब्द को कितनी खूबसूरती और आसानी से पढ़ लिया था . तुम्हारी दोस्ती और साथ पा कर मैं उफनती नदी की तरह बहने लगा था . मुझे किनारों का होश ही कहाँ था , मैं तो सिर्फ बहते रहना चाहता था . तुम्हारे साथ गुज़ारा एक एक पल समेत लेना चाहता हूँ अपनी लहरों में.
कितनी घनी होती ही स्मृतियों की बगिया, इनमें से निकलना मुश्किल है और छोड़ना तो है ही दर्द की चुभन सा . कितने लम्बे कदम हैं इन सन्नाटों के की घिरता ही जा रहा हूँ मैं . कितना कुछ याद आ रहा है आज . यह मन भी बड़ा अजीब होता है , ज़िन्दगी जी कर सिर्फ खुशियों की उपलब्धियां जुटाता है और मादा बन्दर की तरह खुशियों के शत -विक्षत शव को सीने से लगाये रखता है .
मैं जानता हूँ ' जान ' मुझे Possessive नहीं होना चाहिए पर पता नहीं क्यूँ मैं ये बर्दाश्त नहीं कर सकता की तुम्हारे और मेरे बीच कोई आये . तुम और लोगों के साथ कैसे भी सम्बन्ध रखो पर मेरे और तुम्हारे रिश्ते से उन्हें दूर ही रखो . हमारी दोस्ती में उन लोगों की वजह से कोई फरक नहीं पड़ना चाहिए . इतनी उम्मीद तो मैं तुम से कर ही सकता हूँ ना जान .........
सवाल जवाब .....
उस से कहो एक बार भूल कर आ जाये ,
जो बीती है उस पर , वो तो सुना जाये ,
हंस हंस के ग़म छुपाने का हुनर ,
उस से कहो हम को भी सिखा जाये ,
उस की याद में तड़पता रहता हूँ हर पल ,
उस से कहो मेरे दिल से अपना नाम तो मिटा जाये ,
अरसा हुआ है चाँद को देखे हुए लोगो ,
उसे कहो के अपना चेहरा तो दिखा जाये ,
आये भी तो क्या दे सकूँगा उस को ,
फ़क़त एक ज़िन्दगी है , वो अपने नाम लिखवा जाये ....
आना तो है शायद कुछ देर हो जाए
जो बीती है उसका जखम भर तो जाये
ग़म छुपाने का हुनर नहीं है ये
हम तो तेरी याद में ही मुस्कुराये
दिल से मिटाना तो दूर की बात है
पहले उस पेड़ से तो नाम मिट जाये
हम इस उम्मीद से आसमान देखते हैं
शायद चाँद के जरिये ही बात हो जाये
खुश हैं सुनकार की तुम तो जिंदा हो
हम अपनी जिंदगी तो कब की दफना आये .
प्यार .......
वो ...
हर इकरार का मतलब इकरार नहीं होता..
हर इनकार का मतलब इनकार नहीं होता ..
यूँ तो हजारों से मिलती हैं नज़रें ..
हर नज़र का मतलब प्यार नहीं होता.
माना हर इकरार का मतलब इकरार नहीं होता..
माना हर इनकार का मतलब इनकार नहीं होता..
हजारों से मिलाती हो हम से चुराती हो ..
क्या नज़ारे चुराना भी प्यार नहीं होता .
Sunday 4 March 2012
प्यारी प्यारी सी जान .........
'तुम '' कितनी अच्छी लगती हो
जब गहरी सोचो में डूबे तुम हौले हौले चलती हो
जब तन्हाई के शोलो में तुम रफ्ता रफ्ता जलती हो
जब भीगे भीगे मौसम में तुम लम्हा लम्हा सोचती हो
जब अपनी काली आँखों से तुम मुझ को देखा करती हो
जब प्यार मोहब्बत के किस्से तुम कान लगा कर सुनती हो ,,
जब अपनी बोलती आँखों से तुम मेरा सब कुछ माँगा करती हो
जब दिल की मीठी बातों पर तुम थोडा सा घबराती हो
तो ऐसे सारे लम्हों में ऐ मेरी जाने -ऐ -जान
तुम क्या जानो "तुम कितनी अच्छी" लगती हो
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