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Tuesday 6 March 2012

कोई ख्वाब नहीं ....


मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है ,
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ...
की  तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई ख्वाब नहीं ....
यहाँ तो दिल का यह आलम है क्या कहूं कम्बखत..
भुला सका ना यह  वो सिलसिला जो था भी नहीं....
वो एक खयाल जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो  एक  बात  जो  मैं  कह  नहीं सका  तुमसे
वो  एक  रब्त  जो  हम  में  कभी रहा  ही  नहीं
मुझे  है  याद  वो   सब  जो  कभी हुआ  ही  नहीं
अगर  ये  हाल  है  दिल  का  तो  कोई समझाए ...
तुम्हें  भुलाना  भी चाहूँ  तो  किस  तरह  भूलूँ
की  तुम  तो  फिर  भी  हकीकत  हो कोई  ख़्वाब  नहीं ...

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