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Thursday 19 April 2012

ज़िन्दगी यूँ थी....












ज़िन्दगी  यूँ  थी  के  जीने  का  बहाना तू   था 
हम  फ़क़त  ज़ेब -इ -हिकायत  थे , फ़साना  तू  था...

हम  ने  जिस  जिस  को  भी  चाहा  तेरे  हिज्राँ  में , वो  लोग
आते  जाते  है  मौसम  थे , ज़माना  तू  था...

अब  के  कुछ  दिल  ही  न  मन  के  पलट  कर  आते
वरना  हम  दर -बा -दरों  का  तो  ठिकाना  तू  था...

यार -ओ -अघ्यार  के   हाथों  में  कमाने  थीं  'फ़राज़'
और  सब  देख  रहे  थे  के  निशाना  तू  था....

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