ज़िन्दगी यूँ थी के जीने का बहाना तू था
हम फ़क़त ज़ेब -इ -हिकायत थे , फ़साना तू था...हम ने जिस जिस को भी चाहा तेरे हिज्राँ में , वो लोग
आते जाते है मौसम थे , ज़माना तू था...
अब के कुछ दिल ही न मन के पलट कर आते
वरना हम दर -बा -दरों का तो ठिकाना तू था...
यार -ओ -अघ्यार के हाथों में कमाने थीं 'फ़राज़'
और सब देख रहे थे के निशाना तू था....
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